लेखन-वीरेन्द्र सिंह चट्ठा
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वह गौरवर्णीय और छरहरी देहयष्टि वाली युवती रिंग रोड पर बने धौलाकुंआ बस स्टैण्ड पर बस से उतरी तो उसके साथ उसका साथी भी बस से नीचे उतर आया। दोनों आपस में धीरे-धीरे बातें करते हुए मार्टिन रोड के ठीक सामने बने फुटओवर की ओर बढ़े और अपने आसपास से बेखबर फुटओवर पर चढ़ने लगे।
अचानक बस स्टैण्ड से थोड़ी दूर खड़े एक छोटे से कद के सांवली रंगत वाले युवक की निगाह युवती पर पड़ी। वह तेजी से फुटओवर की ओर युवती के पीछे लपका। फुट ओवर पर अनेकों लोग आ-जा रहे थे। युवक और युवती फुट ओवर की सीढ़ियां चढ़कर उफपर पहुंच चुके थे।
सांवली रंगत का वह छात्र सा दिखाई देने वाला युवक तेजी से चलता हुआ युवती के पास पहुंचा। उसकी पीठ पर ऐसा बैग लटक रहा था, जैसे आमतौर पर छात्र लटकाये रखते हैं। जब वह युवक युवती के थोड़ा सा दूर था, तो उसने अपनी पीठ पर बंधे बैग में से एक पिस्तौल निकाला और इससे पहले कि कोई उसे कुछ कहता या उसे रोकने की कोशिश करता, युवक ने युवती के ठीक पीछे पहुंचकर पिस्तौल युवती की पीठ से सटाया और फायर कर दिया। पिस्तौल की गोली लगते ही युवती के मुंह से जोर से चीख निकली।
युवती के साथ चल रहे युवक ने अपने अत्यंत निकट अचानक फायर होने की आवाज और तत्काल ही अपने साथ चल रही युवती की चीख सुनी, तो वह घबड़ा गया। युवती चीखते हुए नीचे को झुकती जा रही थी। युवक ने फुटओवर की नीचे जाने वाली सीढ़ियों की ओर एक युवक को हाथ में पिस्तौल लिये दौड़ते देखा। युवक क्षण भर में ही सारा मामला समझ गया कि वह भाग रहा युवक उसकी साथी युवती को गोली मारकर भाग रहा है। उसने आसपास जाते लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए शोर मचाया, ‘पकड़ो-पकड़ो, वह गोली मारकर भाग रहा है।’
फायर की जोर की आवाज और युवती की चीख और युवती के साथी युवक के शोर को सुनकर फुटओवर और नीचे सड़क पर आते-जाते लोगों का ध्यान आकृष्ट हुआ। उन्होंने देखा कि एक युवक पिस्तौल लहराता हुआ लगभग भागता हुआ फुटओवर से नीचे उतर रहा था। उस पिस्तौल लेकर भाग रहे युवक ने जब फुटओवर पर आते-जाते लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट पाया, तो उसने फुटओवर की पूरी सीढ़ियां उतरने की जहमत नहीं की और वह फुटओवर की सीढ़ियों के आधे भाग पर बनी लोहे की रेलिंग पर चढ़ा और वहां से नीचे कूद गया।
सड़क पर कूदने के बाद वह किसी कुशल नट की तरह खड़ा हुआ और अपने हाथ में दबे पिस्तौल को लहराता हुआ एक ओर को दौड़ लियि। सड़क पर मौजूद किसी आदमी में साहस नहीं हुआ कि वह आगे बढ़कर युवक का रास्ता रोक ले। वह युवक अपने हाथ में दबे पिस्तौल के बल पर राह बनाता हुआ आसानी से एक ओर को बढ़ता चला गया। लोग असहाय उसे जाते देखते रह गये।
युवती कमर में गोली लगने से बुरी तरह घायल हो गयी थी। उसके जख्म से बलबलाकर खून निकलने लगा था। वह गोली लगने के बाद एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकी और भरभराकर नीचे गिर गयी। बहुत से लोग घायल युवती की ओर दौड़े।
युवती का साथी युवक इस घटना से बुरी तरह से घबरा गया था। उसने देर तक लोगों को उसकी साथी युवती पर प्राणघातक हमला करने वाले युवक को पकड़ने को कहा। किंतु जब किसी ने उसे नहीं पकड़ा, तो उसने अपने मोबाइल फोन से तुरंत इस घटना की सूचना 100 नम्बर पर दिल्ली पुलिस कण्ट्रोल रूम को दे दी। कण्ट्रोल रूम को युवक ने अपना नाम आदित्य ( परिवर्तित नाम) बताया था। पुलिस कण्ट्रोल रूम ने इस सूचना को तुरंत ही निकट के पुलिस स्टेशन धौलाकुंआ को प्रेषित कर दिया। उस समय सुबह के लगभग साढ़े दस बजे थे। थाना प्रभारी इंसपेक्टर दिनेश कुमार थाने के कर्मचारियों की ब्रीफिंग ले रहे थे। उस दिन क्योंकि महिला दिवस था। उनके क्षेत्र में कुछ स्थानों पर महिला दिवस के उपलक्ष्य में महिला संगठनों के कार्यक्रम थे। अतः वे उन स्थानों पर फोर्स डिप्यूट कर रहे थे ताकि किसी प्रकार की कोई अप्रिय घटना न घट सके। लेकिन जब उन्हें पुलिस कण्ट्रोल रूम का भेजा उक्त संदेश मिला, तो वे विचलित हो उठे। यह तो जैसे सिर मुंडाते ही ओले पड़ने वाली बात ही हुई थी। महिला दिवस के आरम्भ होते ही एक ऐसी घटना घट गयी थी जो उनकी परेशानी को बढ़ाने वाली थी।
इंसपेक्टर दिनेश कुमार ने तुरंत इस घटना की सूचना अपने उच्च अधिकारियों को दी और अपने हमराह थाने के अधिकारियों और अन्य पुलिस कर्मचारियों के साथ तुरंत ही घटनास्थल की ओर दौड़ पड़े। जिस समय इं. दिनेश कुमार घटनास्थल पर पहुंचे, उन्हें फुटओवर पर कोई घायल युवती पड़ी नहीं दिखाई दी। घटनास्थल पर कई लोग एकत्र थे, किंतु उन लोगों में कोई आदित्य नाम का युवक उन्हें वहां मौजूद नहीं मिला, जिसने पुलिस कण्ट्रोल रूम को इस घटना की सूचना दी थी। हां, फुटओवर पर एक स्थान पर ढेर सारा खून जरूर पड़ा था लगता था कि उस स्थान पर युवती को गोली मारी गयी थी। क्योंकि वहीं पास ही एक छोटा सा लेडीज पर्स भी पड़ा हुआ था। प्रकट था कि पुलिस कण्ट्रोल रूम की सूचना सत्य थी। लेकिन सवाल यह था कि गोली लगने से घायल युवती कहां चली गयी थी? क्या वह स्वयं ही कहीं जाने की स्थिति में थी? या उसे कोई कहीं ले गया था? कण्ट्रोल रूम द्वारा उनको दी गयी सूचना से इस बात का स्पष्टीकरण नहीं हुआ था कि जिस युवक ने कण्ट्रोल रूम को इस घटना की सूचना दी थी, वह कौन था और अब वह कहां था?
इं. दिनेश कुमार ने जब घटनास्थल पर मौजूद लोगों से व्यापक पूछताछ की, तो एक युवक ने उनको बताया कि उस घायल युवती को कुछ लोग उठाकर रिंग रोड पार कर एक आटो में डालकर कहीं ले गये थे। सम्भवतः वे युवती को उपचार के लिए ही किसी अस्पताल ले गये होंगे। लेकिन वे युवती को कहां ले गये थे, यह बात किसी को भी पता नहीं थी।
दिनेश कुमार आशंकित हो उठे। कहीं घायल युवती को उठाकर ले जाने वाले हमलावर के साथी ही तो नहीं थे? यदि ऐसा था तो यह अत्यंत ही गम्भीर मामला हो सकता था। दिनेश कुमार ने मौके पर मौजूद लोगों से जब विस्तृत पूछताछ की तो उन्हें पता चला कि युवती को गोली मारने वाला युवक छोटे से कद का गहरी सांवली रंगत का युवक था। उसने काली शर्ट और जीन्स पहनी हुई थी और उसकी आयु लगभग 25-26 साल थी। उसने अपनी पीठ पर एक बैग बांधा हुआ था। और जो युवक उस घायल युवती को उठाकर ले गया है, वह मध्यम शरीर का पांच फुट छह-सात इंच उफंचा का गंदुम से रंग का युवक था।
इंसपेक्टर दिनेश कुमार अभी वहां पूछताछ कर ही रहे थे कि वहां पुलिस उच्चाधिकारी भी पहुंचने लगे। एसीपी वसंत कुञ्ज मौहम्मद अली, ओपरेशन सैल एसीपी कुलवंत सिंह, साउथ जिला डीसीपी एच जी एस धालीवाल व एडीशनल डीसीपी विजय सिंह सहित सभी छोटे-बडे़ अधिकारी घटनास्थल पर पहुंच गये और मामले की छानबीन में जुट गये।
पुलिस अधिकारियों के सामने सबसे बड़ प्रश्न यह था कि गोली से घायल युवती कहां थी और उसे वहां से कौन और कहां ले गया था? व्यापक पूछताछ से पुलिस को पता चला कि कुछ व्यक्ति घायल युवती को एक ऑटों में डालकर आश्रम की दिशा में ले गये थे। लेकिन युवती के वे मददगार कौर थे और वे उस युवती को कहां ले गये थे, इसका कुछ पता नहीं चल पाया था।
घटनास्थल पर मिला वह लेडीज पर्स निश्चित ही उसी घायल युवती का ही था। पर्स की पड़ताल की गयी तो पर्स में से मेकअप का कुछ सामान, एक मोबाइल फोन व एक परिचय पत्र व डीटीसी बस का एक मासिक पास बरामद हुआ। डीटीसी बस के पास के अनुसार युवती का नाम सारिका (परिवर्तित नाम) था और वह साउथ कैम्पस के आर एल ए कालेज में बी कॉम की द्वितीय वर्ष की छात्र थी और नारायणा विहार गांव के निवासी रोहताश सिंह (परिवर्तित नाम) की पुत्री थी।
डीसीपी एच जी एस धालीवाल ने अपने अधीनस्थ अधिकारियों को आदेश दिया कि वे अविलम्ब धौलाकुंआ से आश्रम की ओर जाने वाले मार्ग पर स्थित सभी मुख्य अस्पतालों में जाकर पता लगाएं कि उस युवती को कहां ले जाया गया है। इसी के साथ उन्होंने पर्स से बरामद मोबाइल फोन में फीड नम्बरों से युवती के माता-पिता को सूचना देने का निर्देश दिया। युवती के मोबाइल के नम्बरों की छानबीन से उसके माता-पिता का फोन नम्बर मिल गया। उनको इस मामले की सूचना दे दी गयी।
आनन-फानन में पुलिस की कई टुकड़ियां बनाकर आसपास के ट्रामा सेण्टर, सफदरजंग और एम्स आदि अस्पतालों के लिए रवाना की गयीं। कई अस्पतालों में खोजबीन के बाद आखिर पुलिस उस घायल युवती का पता चलाने में सफल हो गयी। घायल युवती सफदरजंग अस्पताल में भर्ती थी। उसको आदित्य नामक वह युवक ही सफदरजंग अस्पताल उपचार के लिए लाया था जो घटना के समय उसके साथ था।
पुलिस अध्किरियों को पता चला कि आदित्य ने घायल सारिका को बचाने का भरसक प्रयास किया था, किंतु उसका प्रयास सफल नहीं हो सका था। क्योंकि डाक्टरों ने सारिका को देखते ही मृत घोषित कर दिया था। यानी वह रास्ते में ही दम तोड़ चुकी थी।
आदित्य ने इस घटना की सूचना सारिका के घर वालों को अपने फोन द्वारा दे दी थी। पुलिस के सफदरजंग पहुंचने से पहले ही उसके माता-पिता अस्पताल में पहुंच चुके थे। वे लोग बुरी तरह से विलाप कर रहे थे। मृतका युवती सारिका की आयु 20-21 वर्ष के लगभग थी। वह छरहरे जिस्म की निहायत ही सुंदर युवती थी। उसने चूड़ीदार पाजामा और टॉप पहन रखा था।
सारिका हत्याकाण्ड की प्राथमिक रिपोर्ट थाना धौलाकुंआ में अ. सं. 49/11 पर भा. दं. वि. की धारा 302 के अंतर्गत दर्ज की गयी। इस मामले की जांच का कार्य थाना प्रभारी इं. दिनेश कुमार ने अपने पास रखा।
इस बीच उच्चाधिकारियों ने साउथ जिले के ऑपरेशन सैल को भी घटनास्थल पर पहुंचने का आदेश दे दिया था। अतः साउथ जिला स्पेशल सैल प्रभारी इंसपेक्टर ऐशबीर भी अपने अधीनस्थों के साथ मामले की छानबीन के लिए घटनास्थल पर पहुंचे। नौजवान और तेजतर्रार, क्राइम विश्लेषण और अपराधियों के मनोविज्ञान से जुड़े तथ्यों के गहन जानकार इंसपेक्टर ऐशबीर सिंह को भी सारिका हत्याकाण्ड की छानबीन में लगा दिया गया।
पुलिस अधिकारी इस हत्याकाण्ड को कई कोणों से देख रहे थे। इस मामले में एक कोण तो प्रेम प्रसंग का हो सकता था। क्योंकि मृतका सारिका अत्यंत ही सुंदर थी, अतः स्वाभाविक था कि उसके सम्पर्क में आने वाले उसकी ओर अवश्य ही आकर्षित होते होंगे। और शायद इसी कारण यह घटना घटी थी। अनुमान लगाया गया कि या तो यह हत्याकाण्ड ऐसे प्रेम प्रसंग का बर्बर परिणाम था जिसमें एक तरफा प्यार था यानी हत्यारा सारिका को चाहता लेकिन सारिका उसे नहीं चाहती थी और इसी हताशा के चलते उसने सारिका को मार डाला था। या यह भी हो सकता था कि सारिका और हत्यारे में प्यार हो और बाद में सारिका का झुकाव किसी अन्य युवक की ओर हो गया था और हत्यारा इस बात को सहन नहीं कर सका और उसने हताशा में सारिका को मार डाला था। इसके अलावा इस घटना के पीछे एक कारण यह भी हो सकता था कि प्रेम प्रसंग के अतिरिक्त किसी और कारण से हत्यारे और सारिका के बीच वैमनस्य हो गया था और इसी वैमनस्य के चलते हत्यारे ने सारिका की हत्या कर डाली थी। अधिकारियों ने इस बिंदू पर भी ध्यान दिया कि कुछ दिन पूर्व दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव हुए थे, हो सकता था कि सारिका ने इन चुनावों में किसी छात्र नेता का चुनाव अभियान के दौरान विशेष चुनाव कैम्पेन में शिरकत किया था जिस कारण वह किसी सिरपिफरे छात्र नेता के क्रोध का शिकार बन गयी थी।
बहरहाल सम्भावनाएं बहुत थीं, लेकिन पुलिस के पास कोई ऐसा ठोस सबूत नहीं था, जिसके आधार पर इस हत्याकाण्ड की जांच को आगे बढ़ाया जा सकता। डी सी पी श्री धालीवाल ने जिले के समस्त अधीनस्थ अधिकारियों को इस हत्याकाण्ड की तह तक पहुंचने के आदेश दे दिये। थाना धौलाकुंआ सहित जिले की सभी जांच एजेंसियां सारिका हत्याकाण्ड की तह तक पहुंचने के प्रयास में जुट गयीं।
उस दिन चूंकि महिला दिवस था और एक युवक कालेज की एक छात्रा की सरेआम हत्या कर आराम से फरार हो गया था, इस पर आरएलए कालेज सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के आसपास के कालेजों के छात्र देखते ही देखते धौलाकुंआ क्षेत्र में एकत्र होने शुरू हो गये। छात्रों ने पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन करते हुए पुलिस और प्रशासन के विरुद्ध नारे बाजी शुरू कर दी।
दिल्ली प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्षा बरखा सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्षा प्रिया डबास, सचिव नीतू डबास आदि छात्र नेताओं सहित अन्य सभी महिला संगठन इस आंदोलन में आकर शरीक हो गये। छात्रों के इस प्रदर्शन के चलते धौलाकुंआ और आरएलए कालेज के आसपास के सारे क्षेत्र की सड़कें जाम हो गयी थीं।
छात्रों के प्रदर्शन से पुलिस विभाग के अधिकारियों के हाथ-पैर बुरी तरह से फूल गये थे। छात्र अभी तक संयमित प्रदर्शन कर रहे थे, किंतु उनका यह आंदोलन कब उग्र रूप धारण कर लेगा, कोई नहीं जानता था। पुलिसि अध्किरियों की समझ में नहीं आ रहा था कि उस स्थिति को कैसे सम्भाला जाए। प्रिंट और इलैक्ट्रिनिक मीडिया के लिए यह अत्यंत ही चटपटा और बिकाउ मसाला था, सो चारों ओर अखबारों और टी वी न्यूज चैनलों के पत्रकार दौड़ते दिखाई दे रहे थे।
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित, विधायक कर्ण सिंह तंवर सहित अनेकों राजनयिक और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्षा गिरिजा व्यास सहित अनेकों संगठनों के लोग मृतका कुमारी सारिका के शोक संतप्त परिजनों को सांत्वना देने के लिए उसके घर पहुंचे। आगंतुक अधिकांश राजनेता पुलिस की आलोचना कर रहे थे।
पुलिस के लिए यह मामला प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था। लोग दिल्ली को पहले से ही महिलाओं के लिए असुरक्षित बता रहे थे। महिला दिवस के दिन इस प्रकार दिन दहाड़े सरे राह किसी युवती की हत्या होने से उन लोगों को मुंह खोलने का एक और सुनहरा अवसर मिल गया था।
पुलिस के लिए यह हत्याकाण्ड अत्यंत ही पेचीदा था। पुलिस के पास सारिका के हत्यारे के विषय में कोई सूत्र नहीं था। बिना किसी आधार और बिना किसी सूत्र के दिल्ली जैसे महानगर में किसी अज्ञात हत्यारे तक पहुंचना पुलिस के लिए निहायत ही टेढ़ी खीर था। पुलिस की आलोचना करने वाले भी जानते थे कि बिना किसी सबूत के पुलिस किसी अपराधी को चुटकियों में नहीं पकड़ सकती थी। फिर भी लोग पुलिस की आलोचना करने से नहीं चूक रहे थे।
हत्यारा दिल्ली का रहने वाला था या वह दिल्ली से बाहर से आया था, पुलिस को इस सम्बन्ध में कहीं से कोई जानकारी नही मिल सकी थी। पुलिस को आषंका थी कि घटना को घटे अब तक इतना अरसा हो चुका था कि इतनी देर में हत्यारा दिल्ली की सीमाओं से दूर भी जा सकता था। यदि हत्यारा दिल्ली की सीमा से बाहर चला गया, तो उसे पकड़ना दुश्वार हो सकता था।
पुलिस अधिकारियों ने सबसे पहले मामले की खोजबीन का क्रम मृतका के घर और उसके कालेज से आरम्भ किया। तीन पुलिस टीमें सारिका के कालेज में छात्रों से पूछताछ करने हेतु और एक टीम उसके घर पर उसके परिजनों से पूछताछ करने के लिए गठित की गयी। कालेज में पूछताछ करने गयी टीमों द्वारा की गयी व्यापक पूछताछ के बाद भी पुलिस को कोई का सूत्र हाथ नहीं लग सका। इस व्यासपक पूछताछ में सारिका का चरित्र एकदम बेदाग बताया गया। उसके न तो किसी युवक से सम्बन्ध थे और न ही वह चुनावों में ही किसी ग्रुप से जुड़ी थी। इस पूछताछ में पुलिस को बस एक बात का पता चला था कि सारिका अक्सर अपने सहपाठियों से शिकायत किया करती थी कि एक युवक उसका पीछा किया करता और उस पर तरह-तरह की छींटाकसी करता था, जिससे वह बहुत ही परेशान थी। सारिका का पीछा करने वाला युवक कौन था और कहां का रहने वाला था, इसके बारे में सारिका का कोई सहपाठी कुछ न बता सका।
सारिका के घर पूछताछ करने गयी पुलिस टीम को पता चला कि सारिका बहुत ही मृदु व्यवहार वाली युवती थी। सारे मुहल्ले के आबाल-वृद्ध व्यक्ति उसे बेपनाह प्यार करते थे। वह हर किसी के दुख दर्द में शामिल होने वाली लड़की थी। मौहल्ले क्या आसपास भी उसकी किसी से कभी लड़ाई नहीं हुई थी। पुलिस टीम द्वारा की गयी लम्बी पूछताछ के बाद एक यह बात सामने आयी कि कोई साढ़े तीन साल पहले एक सांवला सा छोटे से कद का एक युवक सारिका का पीछा किया करता था। सारिका उससे बहुत ही परेशान थी। एक दिन मौहल्ले के दो लोगों ने उस युवक को पकड़कर जमकर पीटा था। उस दिन सारिका के पिता ने भी उस युवक को डांटा और पीटा था। उस दिन के बाद वह युवक काफी दिन तक सारिका को दिखाई नहीं दिया था। लेकिन इधर कुछ दिन से वह युवक सारिका को फिर परेशान कर रहा था। सारिका ने अपने घर वालों से इस बाबत बताया भी था। लेकिन इससे पहले कि उसके घर वाले उस युवक को सारिका का पीछा करने के बाबत उससे कुछ कहते या उसे डांटते-धमकाते, सारिका की हत्या ही हो गयी थी।
घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों ने हत्यारे युवक का जो हुलिया बयान किया था, ठीक वैसा ही हुलिया उस युवक का भी बताया गया था, जो सारिका का पीछा करने पर सारिका के पिता और उसके मौहल्ले के लोगों के द्वारा पीटा गया था। अब पुलिस अधिकारियों को पूरा विश्वास हो चला था कि सारिका की हत्या में निश्चित ही उसी युवक का ही हाथ था जो सारिका का पहले भी पीछा किया करता था।
लेकिन पुलिस अधिकारियों को तब निराश हो जाना पड़ा, जब पता चला कि सारिका के पिता या मौहल्ले के किसी भी व्यक्ति को यह पता नहीं था कि वह युवक जो सारिका का पीछा किया करता था, कौन था और वह कहां का रहने वाला था। पुलिस अधिकारीयों के लिए यह अत्यंत ही निराशाजनक स्थिति थी। जांच का एक सूत्र हाथ में आते-आते हाथ से पफसल गया था।
डी सी पी जी एच एस धालीवाल ने इस परिस्थिति के मद्देनजर निश्चय किया गया कि नारायणा विहार और उसके आसपास के सारे क्षेत्र को पूरी तरह से छान दिया जाए और किसी भी तरह से उस हत्यारे का पता किया जाए। क्योंकि उन्हें विश्वास था कि हत्यारे युवक का नारायणा विहार से कुछ न कुछ सम्बन्ध अवश्य था।
डीसीपी धालीवाल के निर्देश पर पुलिस टीमों ने हत्यारे युवक को नारायणा विहार इलाके में खोजने का अभियान शुरू कर दिया। इं. ऐशबीर सिंह को विश्वास था कि युवक का पता नारायणा विहार से ही चल सकता था। अतः उन्होंने साहस नहीं खोया और फिर से उसकी तलाश में जुट गये।
इंसपेक्टर ऐशबीर सिंह और उनकी पूरी टीम ने नारायणा विहार के एक-एक मकान में हत्यारे युवक के हुलिये मिलते-जुलते हुलिये के युवक की तलाश आरम्भ कर दी। इस पूछताछ में ऐशबीर सिंह को पता चला कि नारायणा विहार में हर तीसरे-चौथे मकान में छोटी-छोटी व्यवसायिक इकाईयां कार्यरत थीं जिनमें रेडीमेड कपड़े सीने आदि का काम होता था। उन्हें पता चला कि वहां दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, हरियाणा, झारखण्ड और मध्य प्रदेश से कारीगर आते-जाते रहते थे और इन कारीगरों में कोई साल-दो साल काम करता है, तो कोई हफ्ता दो हफ्ता काम करके ही काम छोड़ देता है। यही नहीं ये कारीगर जल्दी-जल्दी काम के ठीये भी बदलते रहते हैं।
कई दिन की मशक्कत के बाद इं. ऐशबीर सिंह को पंकज नामक एक युवक मिला, जिसने उन्हें बताया कि एक युवक सारिका का पीछा किया करता था और जिसे सारिका के पड़ौसियों और सारिका के पिता ने एक बार पीटा था, उसको पंकज ने कई बार राकेश वर्मा के मकान में आते-जाते देखा था। शायद वह वहीं काम करता था।
पंकज से प्राप्त सूचना पर ऐशबीर सिंह का उत्साह बढ़ गया। उन्हें विश्वास हो चला था कि अब वे जल्दी ही हत्यारे तक पहुंचने में कमयाब हो जायेंगे। उत्साह से लबरेज इं. ऐषबीर सिंह पंकज को साथ लेकर राकेश वर्मा के मकान में पहुंचे। लेकिन उन्हें यह जानकर घोर निराशा हुई कि राकेश वर्मा ने उस मकान को लगभग तीन साल पहले किसी दूसरे आदमी को बेच दिया था और नये मकान मालिक ने पुराने सभी किरायेदारों को मकान से निकाल दिया था। इस सूचना से निराश ऐशबीर सिंह नये मकान मालिक से मिले और उससे राकेश वर्मा का पता लिया। राकेश वर्मा द्वारिका में रह रहा था। इं. ऐशबीर िंसह राकेश वर्मा का पता लेकर अविलम्ब उसके पास द्वारिका पहुंचे और उससे नारायणा विहार वाले उसके मकान में काम करने वाले किरायेदारों का विवरण तलब किया। लेकिन राकेश वर्मा ने ऐशबीर सिंह को बताया कि क्योंकि अब उसे पुराने मकान से सम्बन्धित कागजात रखने की कोई जरूरत नहीं थी, अतः उसने उस मकान से सम्बन्धित सारे रिकार्ड को नष्ट कर दिया था।
राकेश वर्मा से यह बात सुनकर ऐशबीर सिंह को लगा कि जैसे उनके हाथ में आयी सफलता रेत बनकर निकल गयी है।
ऐशबीर सिंह ने राकेश वर्मा पर दबाव डाला कि वह किसी भी तरह अपने पुराने मकान के किरायेदारों के नाम-पते पता कर उन्हें बताये। तब राकेश ने अपने पुराने कागजात को खंगाला। इस प्रयास में उसे कुछ ऐसे कागजात मिल गये जिनमें कि उसके नारायणा विहार वाले मकान के चार-पांच पुराने किरायेदारों के नाम-पते मौजूद थे। इं. ऐशबीर िंसंह ने राकेश से वे पते ले लिये।
अब इं. ऐशबीर िंसंह को फिर वहीं से खोज करनी थी, जहां से उनकी खोज आरम्भ हुई थी। लेकिन ऐशबीर सिंह को इस बार विश्वास था कि व्यापक छानबीन करने पर वे राकेश वर्मा के दिये नाम वाले किरायेदारों में से किसी न किसी व्यवसायी को खोज ही लेंगे और उसकी सहायता से वे हत्यारे तक पहुंचने में सफलता पा लेंगे। अतः वे तुरंत फिर नारायणा विहार वापिस आये और राकेश वर्मा से मिले नामों वाले लोगों की खोज शुरू की।
इस खोजबीन में इं. ऐशबीर िंसंह को राकेश के पुराने मकान में काम करने वाला कोई व्यवसायी तो हाथ नहीं लग सका, लेकिन उन्हें एक महत्वपूर्ण सफलता अवश्य मिली कि उन्हें सारिका के हत्यारे के नाम का पता चल गया। वे जिस हुलिये वाले युवक की खोज कर रहे थे, उसका नाम विजय बताया गया था और वह उ. प्र. के जिला सीतापुर का रहने वाला था।
लेकिन अब समस्या यह थी कि जिला सीतापुर में विजय कहां का रहने वाला था, इसके बारे में भी कोई जानकारी हासिल न हो सकी। इस समय वह दिल्ली में कहां रहा रहा था, इस विषय में कापफी पूछताछ करने पर बस यही पता चला कि विजय तीन-साढ़े तीन साल पहले तक नारायणा विहार में राकेश वर्मा के मकान में सिलाई मशीन पर काम करता रहा था। लेकिन इसके बाद वह कहां गया, किसा को पता नहीं। बात फिर अटककर रह गयी थी। किसी को विजय के सही पते के बारे में कोई जानकारी न थी।
इस पूछताछ अभियान में इं. ऐशबीर िंसंह को ऐच्छिक सफलता तब मिली जब उन्हें पता चला कि विजय जैसे नाक-नक्श का एक युवक नारायणा विहार में ही कमाल नामक एक आदमी की फैक्ट्री में काम करता देखा गया था। अब कमाल की पफैक्ट्री को खोजने का काम शुरू हुआ। भारी मशक्कत के बाद कमाल की पफैक्ट्री मिली। कमाल ने पूछताछ में बताया वांछित हुलिये वाले युवक का नाम विजय ही था और वह लगभग तीन साल पहले नारायणा विहार में उसके यहां ही काम करता थ। कमाल ने यह भी बताया कि विजय की नारायणा विहार की किसी युवती का पीछा करने के कारण पिटाई भी हुई थी। कमल ने बताया कि विजय आजकल दिल्ली में ही है और कही सिलाई का ही काम कर रहा है। लेकिन वह कहां काम कर रहा था, कमाल को इस बाबत कुछ पता नहीं था। कमाल ने बताया कि विजय तीन साल पहले अपनी प्रेमिका के घर वालों के द्वारा किये गये अपमान से दुखी होकर दिल्ली छोड़कर मुम्बई चला गया था। कमाल के अनुसार विजय करीब दो महीने पहले कमाल को नारायणा विहार में ही मिला था और उसने कमाल से कहीं काम दिलाने को कहा था। चूंकि उसका चाल-चलन ठीक नहीं था और वह काम में भी गम्भीर नहीं था, सो कमाल ने उसे अपने यहां नौकरी पर नहीं रखा। हां उसने विजय को नारायणा विहार में ही जार्ज नामक एक व्यवसायी के यहां भेजा था।
इं. ऐशबीर िंसंह कमाल से विजय के बारे में जानकारी मिलने से उत्साहित हो उठे। उन्होंने कमाल से जार्ज की फैक्ट्री का पता लिया और अविलम्ब जार्ज के पास जा पहुंचे। लेकिन जार्ज के यहां जाकर पता चला कि विजय ने वहां सिलाई मशीन पर काम तो किया था, किंतु वह तो कई दिन पूर्व वहां से काम छोड़कर जा चुका था। अब विजय कहां काम कर रहा था, जार्ज या वहां काम करने वाले किसी कारीगर को इस
एक बार फिर जांच पटरी से उतर गयी थी। भारी खोजबीन के बाद भी टीम को नारायणा विहार में कोई सफलता हाथ नहींं लगी। जब ऐशबीर सिंह लगभग निराश हो चले थे, उन्हें पता चला कि अशरफ उर्फ फुद्दे नामक एक युवक विजय का खास दोस्त है और वे दोनों आजकल साथ-साथ ही देखे जाते हैं। ऐशबीर सिंह की टीम को यह भी पता चला कि अशरफ भी विजय की तरह सिलाई मशीन का कारीगर है और इन दिनों शकूरबस्ती में कहीं काम कर रहा है।
इं. ऐशबीर िंसंह ने तब शकूरबस्ती की ओर का रुख किया और लम्बी छानबीन के बाद नूरूद्दीन नामक एक आदमी की फैक्ट्री में जा पहुंचे जहां अशरफ काम करता था। लेकिन वहां जाकर उन्हें पता चला कि वह तो एक सप्ताह पहले ही वहां से काम छोड़ चुका था। यहां पूछताछ में पता चला कि विजय ने भी एक सप्ताह तक वहां काम किया था। वे दोनों साथ ही रहते थे। और दोनों एक साथ ही कहीं अचानक गायब हो गये थे। अब वे दोनों कहां थे, किसी को इस बाबत पता नहींं था।
नूरूद्दीन के यहां पूछताछ करने पर पुलिस टीम को यह भी पता चला कि विजय और अशरफ के साथ उसी फैक्ट्री में कमाम करने वाला तबरेज नामक एक और युवक भी गायब था। इन तीनों ने वहां से साथ ही काम छोड़ा था। ऐशबीर सिंह को वहां यह बात और पता चली कि विजय, अशरफ और तबरेज सीतापुर, तीनों ही उ. प्र. के बिसवां कस्बे के रहने वाले हैं।
संयाग से नूरूद्दीन की फैक्ट्री में काम करने वाले एक युवक ने बताया कि पास की ही एक फैक्ट्री में बिसवां के कुछ और युवक भी काम करते हैं। पुलिस टीम ने बिसवां कस्बे के उन कारीगरों से का पता लिया और उनसे सम्पर्क साधकर उनसे विजय अशरफ व तबरेज के बारे में पूछताछ की तो पता चला कि विजय, अशरफ और तबरेज वारदात के दो-तीन दिन पहले तक नाहरपुर, रोहिणी में कहीं काम कर रहे थे और वे गुड़गांव जाने की बात कर रहे थे। बिसवां के कारीगरों से विजय, अशरफ और तबरेज के मोबाइल फोन नम्बर लिये गये।
विजय, अशरफ और तबरेज के फोन नम्बरों को तुरंत ही इलैक्ट्रानिक सर्विलांस पर लगाया गया। तीनों की फोन डिटेल से पता चला कि विजय का फोन उस समय मुम्बई में चल रहा था जबकि अशरफ और तबरेज के फोन सीतापुर के बिसवां इलाके में क्रियाशील थे।
इं. ऐशबीर िंसंह ने अब तक उपलब्ध तमाम जानकारी को अपने उच्चाधिकारियों को अवगत कराया। डीसीपी धालीवाल ने उन्हें निर्देश दिया कि वे अविलम्ब स्पेशल स्टाफ टीम को आवश्यक निर्देश के साथ सीतापुर जिले के कसवां कस्बे के लिए रवाना करें और वहां मौजूद अशरफ और तबरेज को पकड़कर लाएं। इं. ऐशबीर िंसंह ने स्पेशल स्टाफ की टीम को अविलम्ब बिसवां रवाना कर दिया।
स्पेशल स्टाफ की पुलिस टीम 10 मार्च को बिसवां पहुंची। वहां थोड़े से प्रयास से ही उन्हें अशरफ और तबरेज को खोजने में सफलता मिल गयी। अशरफ और तबरेज ने पुलिस को देखकर छिपने का प्रयास किया, किंतु उन दोनों को आसानी से काबू कर लिया गया। किंतु विजय बिसवां में नहींं मिला। अशरफ और तबरेज से पूछताछ की गयी, तो उन्होंने स्वीकार किया कि विजय ने उनसे बताया था कि उसने सारिका की गोली मारकर हत्या की थी। उन दोनां ने बताया कि विजय सारिका की हत्या करने के बाद उनसे आग्रह किया था कि वे उसे किसी उपयुक्त जगह पर ले जाकर छिपा दें, ताकि वह पुलिस के हाथ न आ सके। तब अशरफ और तबरेज उसे छिपाने के लिए गुड़गांव ले गये थे और वे तीनों वहां एक दिन छिपकर रहे थे। लेकिन जब उन्होंने अखबारों में पढ़ा कि दिल्ली पुलिस विजय की तलाश में बुरी तरह से भागदौड़ कर रही है, तो विजय ने घबराकर गुड़गांव को छोड़कर मुम्बई जाने का निर्णय किया। और विजय उसी दिन मुम्बई चला गया। तबरेज और अशरफ भी दिल्ली पुलिस से बचने के लिए गुड़गांव से भागकर अपने घर चले आये थे।
स्पेशल स्टाफ टीम ने अशरफ और तबरेज से व्यापक पूछताछ की और विजय के मुम्बई में छिपने के ठिकानों का पता किया और इस सूचना को अविलम्ब इं. ऐशबीर सिंह को पफोन से सूचित किया। ऐशबीर सिंह ने इस प्राप्त जानकारी को तुरंत डीसीपी धालीवाल सहित अपने अन्य उच्च अधिकारियों को पहुंचाया।
उधर गुड़गांव गयी पुलिस टीम को झाड़सा गांव में रहने वाले विजय के एक जानकार से विजय का वह पुराना फोन नम्बर मिल गया जो वह मुम्बई प्रवास के दौरान इस्तेमाल करता रहा था। विजय के उस नम्बर को सर्विलांस पर लगाया गया, तो पता चला कि वह नम्बर सक्रिय था और उस समय मुम्बई में चल रहा था। निश्चय हो गया था कि विजय मुम्बई पहुंच गया था। यही नहीं, उस फोन नम्बर की कॉल डिटेल्स से जोगेश्वरी, गौरेगांव और मलाड़ में रहने वाले विजय के कुछ जानकारों के नम्बर भी मिल गये।
डीसीपी एचजीएस धालीवाल ने इन तमाम जानकारियों के उपलब्ध होते ही इं. ऐशबीर सिंह को तमाम जानकारियों से अवगत कराते हुए उन्हें आदेश दिया कि वे अविलम्ब मुम्बई जाएं और विजय को गिरफ्रतार करें।
इं. ऐशबीर सिंह डीसीपी धालीवाल ने इस आदेश पर मुम्बई जाने वाली पहली हवाई उड़ान में अपनी और अपनी टीम के सदस्यों के जाने की व्यवस्था की और 11 मार्च की सुबह मुम्बई के लिए प्रस्थान कर गये।
बिसवां गयी पुलिस टीम अशरफ व तबरेज को लेकर दिल्ली पहुंची और दोनों को हत्याभियुक्त विजय की सहायता करने के अपराध में गिरफ्रतार कर जेल भेज दिया।
मुम्बई पहुंचकर इं. ऐशबीर सिंह ने विजय के ज्ञात दोस्तों के ठिकानों पर छापा मारा, किंतु वह कहीं हाथ नहीं लग सका। इस भागदौड़ में इं. ऐशबीर सिंह को विजय के एक दोस्त ने बताया कि विजय मुम्बई मलाड के मालवाणी इलाके में कहीं पर रह रहा है। लेकिन वह कहां रह रहा है, इसके बारे में वह दोस्त नहीं जानता था।
इं. ऐशबीर सिंह अपनी टीम को लेकर मालवाणी क्षेत्र में पहुंचे और वहां के मुख्य बस अड्डे पर चारों ओर फैल गये। शाम तक यह पुलिस दल विजय की प्रतीक्षा में लगा रहा, किंतु वह कहीं नजर नहीं आया।
रात को लगभग सात बजे विजय जैसे हुलिये का एक युवक पुलिस दल को आता दिखाई दिया। युवक अत्यंत ही चौकन्नी निगाहों से चारों ओर देखता हुआ जा रहा था। पुलिस दल ने उस युवक के हाव-भाव देखे तो यकीन हो गया कि वही विजय है। जब वह युवक एक गली में प्रविष्ट हो रहा था, तो उसे दबोच लिया गया।
अपने आप को कुछ अनजान आदमियों के चंगुल में घिरा देख युवक बुरी तरह से घबरा गया। उसने खुद को छुड़ाने का भरसक प्रयास किया। किंतु अब उसका यूं छूटना सम्भव न था। और जब उस युवक को पता चला कि वह पुलिस के चंगुल में फंसा है, तो वह एकदम ढीला पड़ गया। उसके चेहरे का रंग पीला पड़ गया था।
वह युवक विजय ही था। उसने पुलिस की पूछताछ में सारिका की हत्या की बात स्वीकार कर ली। उसने इस बाबत जो कुछ बताया उसका सारांश निम्न प्रकार है-
विजय सीतापुर के बिसवां कस्बे के रहने वाले लच्छन का पुत्र था। वह केवल 5 वीं तक पढ़ा लिखा था। वह लगभग चार साल पहले काम की तलाश में दिल्ली आया था। यहां आकर उसने सिलाई मशीन का काम सीखा और नारायणा विहार में एक जगह सिलाई मशीन पर काम करने लगा।
विजय आते-जाते अक्सर सारिका को देखा करता था। वह सारिका के सौन्दर्य से बहुत ही प्रभावित था और उसे अपनी गर्लप्रफेण्ड बनाना चाहता था। लेकिन चूंकि वह कम पढ़ा-लिखा था और वैसे भी छोटे परिवार से था और केवल छोटा सा कारीगर था, सो वह उससे अपने मन की बात कहते हुए हिचकता था। लेकिन इसके बावजूद भी वह सारिका को मन ही मन प्यार करने लगा था। वह सारिका को रोज स्कूल आते-जाते देखने के लिए उसके स्कूल के रास्ते में जा खड़ा होता था और उसे अपलक देखा करता था।
सारिका की आयु उस समय 14-15 साल थी। सारिका का दपदप करता सौन्दर्य देखने वाले का अपनी ओर आकर्षित किये बिना नहीं रहता था। वह बहुत ही सीधी सादी और मनमौजी लड़की थी। उसे नहीं पता था कि विजय नाम का कोई आवारा भौंरा उसके सौंदर्य को पान करने के लिए बेताब है और उसकी राहों में पलक पावड़े बिछाये खड़ा रहता है। उस अल्हड़ बाला को उस समय प्यार की परिभाषा तक नही आती थी।
अब विजय गाहे-बगाहे सारिका से बात करने का प्रयास करने लगा था। लेकिन सारिका उसे शोहदा मानकर उसकी बातों को अनसुना कर देती थी। सारिका भले ही उसे उसकी बातों का जवाब न देती हो, लेकिन इससे विजय निराश नहीं होता था। वह सारिका से एकतरफा प्यार किये जा रहा था। उसे विश्वास था कि उसका प्यार एक न दिन रंग लायेगा जो एक दिन सारिका के दिल में जगह बना लेगा।
लेकिन सारिका को विजय से नफरत थी। वह उससे परेशान हो उठी थी। और जब विजय की गतिविधियां अधिक बढ़ गयीं, तो एक दिन उसने अपने घर वालों को विजय की करतूत के बारे में बता दिया। और एक दिन विजय को सारिका के मौहल्ले के दो आदमियों ने सारिका का पीछा करते और उसे छेड़खानी करते देखा, तो उन्होंने विजय को पीट डाला। इस बीच सारिका के पिता राजेन्द्र भी वहां पहुंच गये। जब उन्हें पता चला कि यह वही शोहदा है जो काफी दिनों से उनकी बेटी को परेशान कर रहा है, तो उन्होंने भी उसे जमकर चपत लगाये और उसे चेतावनी दी कि अगर वह कभी भी उस इलाके में दिखाई दिया और उसने सारिका को कभी भी परेशान किया, तो वे उसका बुरा हाल करेंगे।
अपनी प्रेमिका के सामने यूं अपमानित हो जाने के कारण विजय को बहुत ही आत्मग्लानि हुई थी। अतः वह दिल्ली छोड़कर मुम्बई चला गया था। वहां उसने सारिका को भुलाने का लाख प्रयास किया, किंतु उस उसे नही भुला पाया। और अंततः वह तीन साल मुम्बई में रहकर फिर वापिस दिल्ली आ गया। दिल्ली आते ही उसने सबसे पहले सारिका की खोज खबर ली। उसने जब सारिका को देखा, तो बस देखता ही रह गया। उसके सपनों की रानी सारिका इन तीन सालों में अधखिली कली से फूल बन चुकी थी। उसकी सुंदरता में भी जैसे चार चांद लग गये थे। वह अपलक देर तक उसे देखता रहा, देखता रहा।
अब विजय का फिर वही पुराना क्रम शुरू हो गया था। सारिका इन दिनों आरएलए कालेज में प्रातःकालीन पाली में पढ़ती थी। वह रोज सुबह आठ बजे के आसपास घर से निकलती थी। सारिका के कालेज जाने के समय से पहले उसके रास्ते में जा खड़ा होता और उसकी प्रतीक्षा करता रहता। जब सारिका उसके सामने से गुजरती तो वह उस पर कुछ न कुछ फब्तियां कसता। सारिका विजय को दुत्कार देती और उसे खूब खरी-खोटी भी सुनाती। कभी-कभी विजय सारिका के कालेज तक भी जा पहुंचता और जब वह सारिका को अपने कालेज दोस्तों से हंसते-बोलते और खुलकर मिलते देखता, तो वह जल-भुनकर कवाब बन जाता। उसे यह कतई सहन नहीं था कि उसकी प्रेमिका यूं दूसरे युवकों से इस प्रकार व्यवहार करे और उसे दुत्कारे।
5 मार्च को विजय ने निश्चय किया कि आज वह किसी भी तरह सारिका को रोककर अपने दिल की बात कहकर ही रहेगा। उस दिन उसने सारिका को रोककर अपने मन की बात कहनी चाही, तो सारिका ने उसे बुरी तरह से लताड़ लगायी और कहा, ‘तू पहले अपनी शक्ल और अपनी औकात तो देख। अगर आज के बाद तूने मेरी ओर आंख उठाकर भी देखने की कोशिश की, तो मैं तेरी वो गत कराउफंगी कि तू जिंदगी भर मेरी तो क्या, किसी की ओर भी देखने लायक नहीं रह जायेगा।’
सारिका के इस दिन के व्यवहार से विजय को विश्वास हो गया था कि सारिका कभी उसकी नहीं हो सकेगी। और इस विचार ने उसके मन में यह बात बिठा दी कि यदि सारिका उसकी नहीं हो सकती, तो वह उसे किसी और की भी नहीं होने देगा और वह उसे समाप्त कर देगा। यह विचार मन में आते ही विजय ने सारिका की हत्या की योजना बनानी शुरू कर दी। उसने गुड़गांव जाकर एक देसी पिस्तौल खरीदा और 8 मार्च को सुबह साढ़े आठ बजे ही रिंग रोड पर उस बस स्टैण्ड पर जाकर खड़ा हो गया, जहां सारिका रोज बस से उतरती थी।
नित्य की भांति सारिका उस दिन अपने घर से नियत समय पर रिंग रोड के बस स्टैण्ड पर आकर बस से उतरी। उसके साथ उसका कालेज का सहपाठी आदित्य भी था। जैसे ही विजय ने सारिका को बस से उतरकर फुटओवर की ओर जाते देखा, वह तेजी से उसके पीछे लपका और फुटओवर पर पहुंचकर अपने बैग में छिपाये पिस्तौल को निकालकर सारिका को गोली मार दी और लोगों को पिस्तौल का भय दिखाकर सकुशल वहां से भागने में कामयाब हो गया। उसे विश्वास था कि उसके हाथ में पिस्तौल देखकर कोई भी उसे पकड़ने के लिए उसके पास नहीं आयेगा। और यही हुआ। किसी ने भी उसे पकड़ने का साहस नहीं किया। वह आधा किलोमीटर तक पैदल गया और वहां से वह सीधा कोटला मुबारकपुर पिलंजी गांव गया और पिस्तौल को वहीं छिपा दिया और वहां से अपने दोस्तों अशरफ और तबरेज के पास पहुंचा और उन्हें बताया कि उसने सारिका को गोली मार दी है। उसने उनसे कहा कि वे उसे किसी सुरक्षित जगह छिपने में सहायता करें।
अशरफ और तबरेज विजय को लेकर गुड़गांव पहुंचे। लेकिन जब विजय ने अगले दिन अखबारों में पढ़ा कि पुलिस उसकी खोज में बुरी तरह से जुट गयी है, तो उसे लगा कि वह गुड़गांव में सुरक्षित नहीं है। उसने तभी मुम्बई भाग जाने का निर्णय कर लिया और अशरफ और तबरेज को सलाह दी कि वे भी तुरंत बिसवां चले जाएं वरना वे भी पुलिस की गिरफ्रत में आ सकते हैं।
विजय ने 9 मार्च की रात गुड़गांव रेलवे स्टेशन पर काटी और अगले दिन मुम्बई के लिए जाने वाली पहली गाड़ी से मुम्बई के लिए रवाना हो गया। और 11 मार्च को सुबह मुम्बई पहुंच गया। उसे विश्वास था कि दिल्ली पुलिस वहां उसे कभी भी नहीं खोज सकती थी। किंतु पुलिस ने उसे मुम्बई पहुंचने के केवल 10 घण्टे बाद ही गिरफ्रतार कर लिया।
इं. ऐशबीर सिंह विजय को लेकर दिल्ली आये और 12 मार्च को मैट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के सम्मुख न्यायालय के सुपर्द कर उसका चार दिन का पुलिस रिमाण्ड ले लिया। रिमाण्ड अवधि में विजय ने सारिका हत्याकाण्ड को अंजाम देने सम्बन्धी तमाम जानकारी को विस्तार से बताया। उसने कोटला मुबारकपुर पिलंजी में छिपाया हुआ वह पिस्तौल भी पुलिस को बरामद करा दिया जिसके द्वारा सारिका की हत्या की गयी थी।
रिमाण्ड अवधि समाप्त होने के बाद विजय को भा. वि. की धारा 302, व 27/54/59 के अधीन तिहाड़ जेल भेज दिया।
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